धरती भी नारी है
गतिशून्य
और अपराजिता भी हो जाऊँ,
मगर
एक नारी
एक स्त्री के लिए है,
धरती प्यारी
क्योंकि
धरती भी नारी है,
भार उठाकर भी जो,
नदियाँ-पहाड़ के
दर्द में हैं शामिल
और यहीं हैं चन्दन,
वंदन,
क्रंदन….
कि इस मर्त्यलोक से
इन खुली आँखों से,
निहारती खुला गगन ।