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19 Nov 2018 · 1 min read

धरती पे माँ कहलाती है

आओ एक किस्सा बतलाऊँ,एक माता की कथा सुनाऊँ,
कैसे करुणा क्षीरसागर से, ईह लोक में आती है?धरती पे माँ कहलाती है।
ब्रह्मा के हाथों से सज कर,भोले जैसे विष को हर कर,
श्रीहरि की वो कोमल करुणा, गर्भ अवतरित आती है,धरती पे माँ कहलाती है।

नौ महीने रखती तन में, लाख कष्ट होता हर क्षण में,
किंचित हीं निज व्यथा कहती, सब हँस कर सह जाती है,धरती पे माँ कहलाती है।
बालक को जब क्षुधा सताती,निज तन से हीं प्यास बुझाती,
प्राणवायु सी हर रग रग में,बन प्रवाह बह जाती है,धरती पे माँ कहलाती है।

नित दिन कैसी करती क्रीड़ा,नवजात की हरती पीड़ा,
बौना बनके शिशु अधरों पे, मृदु हास्य बरसाती है।धरती पे माँ कहलाती है।
माँ हैं तो चंदा मामा है,परियाँ हैं, नटखट कान्हा है,
कभी थपकी और कभी कानों में,लोरी बन गीत सुनाती है,धरती पे माँ कहलाती है।

शिशु मोर को जब भी मचले,दो हाथों से जुगनू पकड़े,
थाली में पानी भर भर के,चाँद सजा कर लाती है,धरती पे माँ कहलाती है।
तारों की बारात सजाती,बंदर मामा दूल्हे हाथी,
मेंढ़क कौए संगी साथी,बातों में बात बनाती है,धरती पे माँ कहलाती है।

जाओ तुम्हीं काबा काशी,मैं मातृ वन्दन अभिलाषी,
चारोंधामों की सेवा जिसके,चरणों मे हो जाती है,धरती पे माँ कहलाती है।
माँ को गर न जाना होता, क्या ईश्वर पहचाना होता?
जो ईश्वर में, जिसमे ईश्वर, जो ईश्वर हीं हो जाती है,धरती पे माँ कहलाती है।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

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