धरती की फरियाद
गर्मी आई,
सुखी धरती उगल रही है आग,
सुखी पड़ी धरती आज
रो-रो कर रही फरियाद।
मत काटो तुम पेड़ को,
उजड़ गया है मेरा सारा बाग।
नदी – नाले सब सुख रहे हैं,
सूरज बरसा रहा है आग।
गर्म हवा जला रही है तन को,
झुलसा रहा है गर्मी का ताप।
मेघ भी डरकर भाग गया है,
खेतों में पड़ गई है दरार ।
न सुनने को अब मिल रहा है,
प्रकृति का पहले वाला राग।
कल-कल करती नदियाँ भी,
सुस्त पड़ गई हैं आज।
ऐसा लग रहा है जैसे सबको,
डस रहा है गर्मी का नाग ।
पशु – पक्षी सब तड़प रहे,
कर रहे वो भी फरियाद।
मत काटो वन को आप,
बसेरा है हम सब का जनाब।
धरती का श्रंगार है वन ,
उजाड़ो नही तुम इसको यार।
~अनामिका