धरती की अंगड़ाई
“हरा रंग है हरी हमारी
धरती की अंगड़ाई”
इस प्रण से, इस रंग को हमने
अपने झंडे में डाला,
पर कितना सच में इस प्रण को
अपने जीवन में पाला।
मॉल बना, घर – द्वार सजा,
बाजारों का अंबार लगा,
एयरोड्राम, बंदरगाहों औ
रोड – रेलवे का जाल बिछा,
वन – उपवन का दोहन कर
धरती का चीर – हरण किया।
बंजर भूमि, सूखी नदियांँ,
ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ा खतरा,
कब संभलोगे, ऐ मानव तुम
जब निर्जन हो जाए धरा,
प्रण कर लें हम मिलकर आज
पर्यावरण हो, हरा – भरा।
नित पेड़ लगाएंँ, अगल – बगल
बूढ़े पेड़ों की करें सेवा,
धीरे – धीरे वन क्षेत्र बढ़े,
टल जाए धरती की विपदा,
धरती लेगी अंगड़ाई फिर,
रह जाए झंडे का मान सदा।
मौलिक व स्वरचित
श्री रमण
बेगूसराय