धरती का त्यागपत्र १
सौंप दिया धरती ने अपना त्यागपत्र ब्रह्मा को ,
सभागण सब कर रहे विचार विमर्श ,
ऐसा क्यों किया धरा ने?
होगा क्या सभी जिव जन्तु का??
सोच सोच कर बेचारे देवता परेशान।
मनाने कि बहुत कोशिश की नारायण ने,
पर, व्यर्थ हुआ सब अनुरोध उनका,
वसुंधरा को मनाने के चक्कर में,
बेचारे आपस में ही उलझ पड़े
साथ में लक्ष्मी भी गईं रुठ
हाय, कैसी विडम्बना है?
कहने लगे देव सभी,
मूक-बधिर होकर सभी
कर रहे इंतजार ब्रह्मा के निर्णय का,
कारण पुछा ब्रह्मा ने ,
तो कटघरे में उन्हें हि खड़ा कर दिया धरा ने,
इतना तंग ना हुई मैं सतयुग,त्रेता, द्वापर में,
जितना इस कलयुग ने मुझे महज़ कुछ दिनों में किया,
अब सहन ना होता दर्द मुझे
इन पापी लोभी संतानों के भार का,
सारे संस्कार भुलाकर मेरे,
मुझे हि प्रताड़ित कर रहे,
अब मैं ना पालन करुंगी इनका ,
चाहे जोड़ कितने भी तुम हाथ पांव,
लो संभालो अपने संतानों को,
आखिर,
पिता का भी कुछ धर्म होता है,
व्यंग साध कर विष्णु पे,
रोसपुर्ण बातें करते हुए चल दिए रसा,
अपने मायके के ओर,
पर बेचारी शोक मग्न हो कर
नभ में ही घुम्ने लगी इधर उधर