धन्य हो तुम दारू
लड़ते देखा है, झगड़ते देखा है,
बात-बात में बात को बिगड़ते देखा है,
धन्य हो दारू तुम,
तेरी दो घूँट से बिगड़ते बात को बनते देखा है ।
भाई पर भाई जब,कहर बनकर बरसता है,
कहीं जर,कहीं जोरु,कहीं जमीन के लिए झगड़ता है,
समझाते हैं लोग पर कोई नहीं समझता,
तब तेरी दो घूँट से,
दुश्मन भाई को दोस्त बनते देखा है ।
धन्य हो दारू तुम,
तेरी दो घूँट से बिगड़ते बात को बनते देखा है ।
कुछ लोग दुश्मनी,इस कदर कर बैठते हैं,
बात करना तो क्या,नजर भी नहीं मिलाते हैं,
समझाते हैं लोग पर कोई नहीं समझता,
तब तेरी दो घूँट से,
सबको हँसते-हँसाते देखा है ।
धन्य हो दारू तुम,
तेरी दो घूँट से बिगड़ते बात को बनते देखा है ।
कुछ लोग ऐसे हैं,जो गूंग तो नहीं पर बोलते नहीं,
चाहते हैं पर भीड़ के किसी कार्य को करते नहीं,
तब तेरी दो घूँट से,
पूरे समाज को अपने कंधों पर उठाते देखा है ।
धन्य हो दारू तुम,
तेरी दो घूँट से बिगड़ते बात को बनते देखा है ।
पति-पत्नी के प्यार में,जब हो जाता है तकरार,
कोई किसी से नहीं बोलता,बढता जाता है दरार,
न वो बोलती,न वो बोलता
तब तेरी दो घूँट से,
पति को पत्नी पर प्यार बरसाते देखा है ।
धन्य हो दारू तुम,
तेरी दो घूँट से बिगड़ते बात को बनते देखा है ।
By :- Kundan Singh Bihari