द्वार मैं तेरे आऊं
द्वार मैं तेरे आऊं
हृदय मलिन ले तन ले उज्जवल
द्वार मैं कैसे आऊं
सब द्वारों पर फल कर्मों के
कैसे भीतर जाऊं
हृदय मलिन ले तन ले उज्जवल
द्वार मैं कैसे आऊं
मानव गण में भेजा मुझको
मानव गण में भेजा मुझको
किया बड़ा उपकार
रहा स्वार्थी मैं जीवन भर
रहा स्वार्थी मैं जीवन भर
अपना ही किया उद्धार
हे हरि हर हे मेरे राम
हे हरिहर हे मेरे राम
कैसे दरस को आऊं
हृदय मलिन ले तन ले उज्जवल
द्वार मैं कैसे आऊं
जन्म से लेकर आज तलक मैं
जन्म से लेकर आज तलक मैं
मोह माया में भटका
अपना स्वार्थ और अपनी खातिर
अपना स्वार्थ और अपनी खातिर
बस इसमें ही लटका
हे हरीहर हे मेरे रघुवर
हे हरीहर हे मेरे रघुवर
आने से शरमाऊं
हृदय मलिन ले तन ले उज्जवल
द्वार मैं कैसे आऊं
हृदय मलिन ले तन ले उज्जवल
द्वार मैं कैसे आऊं ।
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश।