द्रौपदी
मामा शकुनी की वह चाल
द्रुत क्रीड़ा में किया कमाल
दास बने बैठे सब पाण्डव
छल से जीता हर एक दाव
धर्मराज नहीं धर्म निभाये
पत्नी को भी दाव लगाये
विनाश बीज शकुनी ने रोप-दी
बीच सभा में खड़ी द्रौपदी
चीर हरण को खड़ा दुशासन
भीष्म नहीं छोड़ पाये आसन
तुनीर में छूपा, तीर कमान
गुरु कुल का, धूमिल हुआ ज्ञान
कर्ण बना आलोचन हार
अब किससे वह करे गुहार
दुष्ट प्रवृत्ति की छवि छाप-दी
बीच सभा में खड़ी द्रौपदी
आवाज़ विकर्ण की दिया दबाय
बीच सभा से दिया भगाय
सभी बने पाषाण मूर्तिया
अधर्म देखते सहते द्रोणाचार्य
वीरो के अब पुरूषार्थ धिकार
लज्जित बातों का दरबार
मानवता की हदें नाप-दी
बीच सभा में खड़ी द्रौपदी
करुण पुकार की करे गुहार
मुरली मनोहर, बनों आधार
चरित्रहीन न होऊ मैं आज
अबला की प्रभु राखो लाज
चक्रधारी अब आओ आज
भक्त रक्षा की करे पुकार
बहना की अब सुनों पुकार
तेरे हाथों लाज शौप-दी
बीच सभा में खड़ी द्रौपदी