द्रोणाचार्य वध
कुरुक्षेत्र की रणभूमि पे अर्जुन ने जयद्रथ संघार किया
पुत्र की चिता समक्ष जो लिया वचन, वह उसने साकार किया
पांडव सेना सुखी हुई पर बात बड़ी थी चिंतामयी
जबतक गुरुवर है रणभूमि में, तब तक न होंगे हम विजयी
तब युक्ति सुझाई माधव ने, ‘क्यों ना ऐसा कोई कार्य करे
गुरुद्रोण छोड़ थे शस्त्र सभी, और स्वयं मृत्यु स्वीकार करे
अश्वस्थामा प्रिय है उनको, उसके खातिर मित्रता छोड़ी
पांचाल नरेश से राज्य भी हड़पा, सारी सीमाएं तोड़ी
रणभूमि में एक गज है, उसका भी नाम अश्वस्थामा है
विगोदार उसका वध करदे, बोले “मैंने मारा अश्वस्थामा है”
ये खबर सुन सकते में आये गुरुवर, तभी प्रहार करना
जब शोक में अस्त्र त्यागेंगे, धृष्तद्युम्न उसी क्षण वार करना!’
बोले धर्मराज, ‘माधव नहीं! यह वध नहीं ये छल होगा
शस्त्रहीन की हत्या करदे अधर्म से भरा वह पल होगा!’
मैं सदा सत्य कहता हूँ, झूट न बोला जाएगा
क्षमा चाहता हूँ माधव! इस योजना का पालन न हो पायेगा!’
माधव बोले, ‘हे धर्मराज! ये मत भूलो की सामने खड़े अधर्मी है
भरी सभा में बना तमाशा, तुमसे सब छीनने वाले कुकर्मी है
क्या धर्म का ज्ञान उन्हें और क्या युद्ध की नीति उनकी?
घेर के मारा अभिमन्यु को और क्या बताऊं अनीति उनकी?
गुरुवर उनकी रक्षा करते, इसीलिए वध उनका करना होगा
और कोई उपाय शेष नहीं, इस झूठे प्रपंच को रचना होगा! ‘
फिर युद्ध छिड़ा योजना तहत, अर्जुन को द्रोण से भिड़ना था
चाहे कुछ भी हो जाए, उनको दूर पुत्र से करना था
इतने में भीमसेन ने मार दिया उस हाथी को
‘अश्वस्थामा मारा गया!’, ये बोला अपने साथी को
सनसनी फ़ैल गयी रणभूमि में, पहुंची सूचना द्रोण के पास
द्रोण बोले, ‘किसी का वचन स्वीकार नहीं, धर्मराज तुमसे है आस!’
बोलो बेटा क्या सत्य है ये की उसने भीम से रार लिया?
बोलो बेटा क्या वाकई भीम ने अश्वस्थामा मार दिया?! ‘
‘हाँ! अश्वस्थामा मारा गया! ‘, धर्मराज ने आधा सत्य बताया
‘पर वह मनुज नहीं हाथी था’, तभी केशव ने शंख बजाया
पूर्ण सत्य न सुन पाए गुरुवर, ऐसी केशव की लीला थी
पर पूर्ण सकते में आये गुरुवर, ऐसी माधव की लीला थी
केशव ने आँखों-आँखों में, धृष्तद्युम्न को दिया इशारा
धृष्तद्युम्न ने खडग घुमाया, सीधे गर्दन पे द्रोण के मारा
गुरु द्रोण का वध हुआ, कुरु सेना पर मानो गिरी गाज
एक सूत पुत्र का चयन हुआ फिर, सेनापति बने अंगराज