द्रुतविलम्बित छंद
विहग वृंद उमंगित शोर है।
उदित भानु तरंगित भोर है।।
क्षितिज रक्तिम प्रकृति घेरता।
अतुल दृश्य विहान बिखेरता।।
गगन शोभित है खग वृंद से।
पवन के थपके मृदु मंद से।।
विपिन बाग सुगंध सुधा है।
मुदित है रवि मुग्ध वसुधा है।।
प्रभु पुकार पुकार करें सदा।
हरि यही बस जीवन संपदा।।
सकल पीर व संकट टाल दो।
दरश दो अब कर निहाल दो।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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