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25 May 2018 · 1 min read

दौलत-ए-बचपन

दौलत-ए-बचपन………✍️
सुनों, बेहिसाब सी गलतियाँ होती हैं बचपन की बेशुमार दौलत।
देतीं हैं सबक भी अनेकोंबार और संग सुधरने की हज़ार मौहलत।
बचपन की दौलत होतीं हैं, दादी-नानी की कहानियाँ।
जो याद रह जातीं हैं बिन याद किए,सभी को मुहज़बनियाँ।
माँ-पापा से मिले छोटे-बड़े खिलौने भी होते हैं अमोल खज़ाना।
दीदी-भैया की रोका-टोकी और गुड्डे-गुड़िया का ब्याह रचाना।
बचपन में तो दौलत किताबों से बाहर ही है होती।
बस मन मस्तिष्क में, कुछ उथल पुथल करने की चिकल्लस है होती।
चटपटी सी खुशियां बचपन खट्टी मीठी चूरन की गोली।
एक पल में तोड़ दोस्ती कट्टा-अब्बा, तो दूजे पल में हँसी ठिठोली।
बचपन ज़िम्मेदारी मुक्त कंधे
अनकही शरारतों के उलझे फंदे।
बचपन कभी होता था स्वछंद, गिट्टे, कंचे,कोकिला छिपाकि और गिल्ली डंडा।
बंद कमरों में कैद हुआ बचपन, चार पर्ची, पिठु गर्म और पोशम पा पड़ा ठंडा।
बचपन था कभी लूडो-साँप सीढ़ी का मज़ा तो कभी कैरम।
बचपन बंधा हुआ चारदीवारी सीमित,है बना मशीनी उपकरण।
बचपन हुआ करता था कभी, स्वतंत्र वातावरण-परिवेश का साज़।
बचपन हुआ अब घर में भी, प्रदूषण मास्क का मोहताज।
हुआ करते थे कभी पडौसी मामा, चाचा, ताऊ था बचपन खुशकिस्मत।
बेख़बर है ‘नीलम’ नामी रिश्तों से, क्योंकि सगे रिश्ते भी लूटते हैं आज अस्मत।

नीलम शर्मा ———✍️

Language: Hindi
1 Like · 514 Views
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