दो सहेलियों का मनो विनोद
(दृश्य 1: एक साधारण रसोई, जिसमें ममता बैठी हुई है, इडली खा रही है। सामने उसकी दोस्त कौशल खडी है।)
ममता (खुश होकर इडली का टुकड़ा तोड़ते हुए):
अरे वाह, कौशल! आज इडली एकदम परफेक्ट बनी है। इतनी सॉफ्ट और चटनी तो… स्वर्ग का स्वाद!
कौशल (हंसते हुए):
अरे, मैंने ही तो सिखाया था तुम्हें इडली बनाना। आज मान ही लो, मेरी वजह से तुम इतनी अच्छी कुक बन गई हो।
ममता (मजाक करते हुए):
हाँ हाँ, गुरु जी, आपकी शिष्या का पूरा श्रेय आपको ही जाता है। लेकिन सच कहूं, ये इडली बना कर मुझे हमेशा अपने बचपन की याद आ जाती है। मां भी ऐसी ही सॉफ्ट इडली बनाती थी।
(ममता थोड़ी भावुक हो जाती है, इडली का अगला टुकड़ा मुंह में रखते हुए रुक जाती है।)
कौशल (गंभीर होकर):
यादें तो हमेशा साथ रहती हैं, ममता। लेकिन चलो, आज का दिन खुशियों वाला है। इडली का स्वाद कम मत होने दो।
ममता (मुस्कुराते हुए):
तुम सही कह रहे हो, कौशल। यादों को ताजगी का हिस्सा बनाना ही तो कला है।
(इतने में ममता का भाई अर्जुन आता है।)
अर्जुन (मजाक में):
अरे वाह! इडली पार्टी चल रही है और मुझे बुलाया तक नहीं!
ममता (हंसते हुए):
तू हमेशा लेट आता है, अर्जुन! अगर टाइम पर आता, तो तेरे लिए भी बचती। अब ये आखिरी इडली मेरी है।
अर्जुन (बच्चों की तरह शिकायत करते हुए):
ये तो चीटिंग है!
(ममता हंसते हुए आखिरी इडली अर्जुन को दे देती है।)
ममता:
ले, खा ले। लेकिन अगली बार टाइम पर आना।
(अर्जुन और कौशल हंसने लगते हैं।)
कौशल:
अर्जुन, अब इस खुशी के मौके पर चाय भी बना लो। आखिर इडली के साथ चाय तो बनती है, न?
(दृश्य हल्की हंसी और बातचीत के साथ समाप्त होता है।)
दृश्य समाप्त
( अगला दृश्य फिर कभी)
कलम घिसाई