दो मैनाः करोना पर
सखी! देख, आदमी,
आजकल कैसे बंद है,
चैतरफा ये हरियाली,
ये मंद-मंद गाती सुगंध है
काश इंसान को अब,
समझ आये ये दोस्ती,
पशु पक्षी पेड़ पौधे हवा,
सभी जी सकें संग संग में
सब कुछ दिया ईश्वर ने यों,
धूप पानी पर्वत समंदर,
सुख साधन,आराम
यहां आनंद ही आनंद है
वृक्ष लताऐं कली पुष्प हैं,
राग रागिनी मधुर गीत हैं,
एकात्म एकस जीव मीत हैं,
कैद नहीं सभी स्वच्छंद हैं
सर्वश्रेष्ठ संरचना ईश्वर की,
आदमी सूरत बिगाड़ दिया,
वरना कैसा सुंदर है जीवन,
चहुंओर उज्ज्वल रंग हैं।
-✍श्रीधर.