दो बोल
दो बोल ही तो हैं….
जो रोते को हंसादें….
और हँसते को रुलादें….!
दो बोल ही तो हैं….
जो एक इन्सान को आसमां पर बिठा दें…!
और दो बोल ही उसे…
पल में….
किसी की भी नज़र से गिरा दें….
इसलिए दोस्तो…
जो भी बोलो…
अपने दिल के तराजू में तौल कर बोलो….
मीठा बोलो …
सदा अपने लफ़्ज़ों में मिश्री घोलो….!
शुभ बोलो…
सकारात्मक बोलो….
ऐसा बोलो ….
किसी का दिल ना दुखे…
ऐसा बोलो…..
सामने वाले के लबों पर…
मुस्कान अपना डेरा जमा ले….
और आपके …
दो बोल…
सबको अपना बनालें….
अपनों से ही ज़िन्दगी है…!
और हाँ…
यही रब की बंदिगी है….!
इसलिए जो भी बोलो सोच समझकर बोलो….!
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© डॉ० प्रतिभा ‘माही’