दो बूँद
दो बूंद गिरी थी पलकों से
दोनों ही मुझको प्यारी थी।
एक पड़ते ही फिसल गई।
बहने की उसकी बारी थी।
दूजी धरती में मगन हुई ,
उसकी जो गति न्यारी थी।
मिली एक को चिकनी सी,
सतह जो नसीबों वाली थी।
दूजी की तकदीर ले गई,
जहां धरा लीलने वाली थी।
कलम घिसाई
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