दो पल गर याद कर लेते..
दो पल गर याद कर लेते, न रहता दर्द सीने में ।
क्या तुम्हें याद नहीं वो पल, जिस्म दो रहते थे चमन में ।।
जिस्म दो जान एक हम थे, हलचलें रहती थी सुर्ख़ियों में ।
ज़माना था तब हमसे, ज़माना आज भी है हमसे ।।
यदा तुम भूल ही जाओगे, यकीं ना हमको था दिलबर ।
फिजाँ में तन्हा अकेला यूँ, हमें तुम छोड़ जाओगे ।।
न तृष्णा थी तुझको मेरी, दिलासा दी क्यों इस दिल को।
मैं प्यासा रह लेता सदा, आह न तुझको फ़िर भरता ।।
ख़ता क्या हो गयी मुझसे, मुझे गर तू बता देता ।
मोहब्बत करने वालों को, न कोई ऐसी सज़ा देता ।।
तूने क्या सोचा था उस वक़्त, मिलूँगा न कभी रहबर ।
दो पल रुख़ मेरे सपनोँ का,
ऐ तृष्णा मुझसे मेरी राह पूछ लेती ।।
फ़ैसला जीने-मरने का मेरे, सुन लिया ग़ैरों से तूने ।
पल दो पल मुझको दे देती, या पल मेरे तू ले लेती ।।
सज़ा ये किस विचलन की, मुझे यूँ हासिल हुई है मितबा ।
मैं अपने आशियाँ में तुमको, छिपा लेता बन बेपरवाह ।।
ज़ख्म मेरे सीने में कपट का, यूँ मुझे सोने नहीं देता ।
जितना बैचेन मैं रहता हूँ, क्यूँ तू है चैन से अब सोता ।।
अरे ओ वेपरबाह ज़ालिम, कभी तो इतना सोच लेता ।
जो दिल है तेरे सीने में, वही दिल मेरे सीने में बसता ।।
आर एस बौद्ध “आघात”
8475001921