दो दिलों में तनातनी क्यों है – संदीप ठाकुर
दो दिलों में तनातनी क्यों है
प्यार के बीच दुश्मनी क्यों है
बंद है बातचीत तक सोचो
सूरते हाल ये बनी क्यों है
क्यों ख़ला से परे भी हैं किरनें
चांद के पार चांदनी क्यों है
मेरा हर दिन उदास सा क्यों है
तेरी हर शाम अनमनी क्यों है
मुंतज़िर मंज़िलों ने पूछ लिया
पांव की राह से ठनी क्यों है
गर इसे सांवला नहीं होना
धूप बदली से फिर छनी क्यों है
हर तरफ़ पसरा क्यों है सन्नाटा
हर तरफ़ एक सनसनी क्यों है
गिर गई सारी पत्तियां फिर भी
छांव इस पेड़ की घनी क्यों है
ढल गया चांद रात बीत गई
पर मेरी छत पे चांदनी क्यों है
संदीप ठाकुर