दो जून की रोटी
दो जून की रोटी
दो जून की रोटी, कहने को तो यह एक साधारण सा मुहावरा है, और इसका जून माह से कोई संबंध नहीं। यह भी पुष्टि नही है कि यह कब और कहां से प्रचलित हुआ, क्यों प्रचलित हुआ।लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ कुछ अलग ही है। आज इसको दो जून यानि दिनाँक से जोड़ भी देखा जा रहा है।ये एक मुहावरा रूप में ही हैं।बचपन में पढ़ी गई किताबों में हमने ऐसे-ऐसे मुहावरे पढ़े जिनका अर्थ जीवन की गहराइयों तक जाता है। ऐसा ही एक मुहावरा दो जून की रोटी भी है। मोटे तौर पर माना जाए तो यह करीब ६०० साल पहले से प्रचलन में है। किसी घटनाक्रम की विशेषता बताने के लिए मुहावरों को जोड़कर प्रयोग में लाया जाता था। यह क्रम आज तक जारी है।
दो जून मतलब दो समय का खाना:
दो जून की रोटी का अर्थ कोई महीना नहीं, बल्कि दो समय (सुबह-शाम) का खाना होता है। साधारण शब्दों में इसका अर्थ कड़ी मेहनत के बाद भी लोगों को दो समय का खाना नसीब नहीं होना, होता है।
यह अवधि भाषा का शब्द है:
संस्कृत विद्वानो ने बताया कि दो जून अवधि भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ वक्त या समय होता है। इससे ही यह कहावत अस्तित्व में आई है।तो आइए हम भी आज दो जून की रोटी के लिए काम करें बडी ईमानदारी से।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद