दो जून की रोटी उसे मयस्सर
दो जून की रोटी उसे मयस्सर,
जिसने खुद तकदीर लिख डाला है,
मेहनतकश, वक्तपाबंद,
पक्का इरादे वाला है।
मितव्ययी, व्यसनरहित
और हिम्मतवाला है,
स्वेद से सींचा जिसने वक्त को,
पत्थर पर लकीर खींचने वाला है।
प्रत्युत्पन्नमतीत्व उसमें,
स्थितप्रज्ञ रहने वाला है,
लाख विपत्ति आए सर पर,
वह धीरज रखने वाला है।
समय सराहना करता उसका,
जो दूरदृष्टि वाला है,
वक्त किया जिसने मुट्ठी में,
वह इतिहास बनाने वाला है।
दो जून की रोटी उसे मयस्सर,
जिसने खुद तकदीर लिख डाला है।
मौलिक व स्वरचित
श्री रमण
बेगूसराय