दो चेहरे
” दो चेहरे ”
इसी कारण अपने दो चेहरे अपने अंदर लिए फिरता हूं मैं।
किसी को पास तो किसी को
अपने से दूर आजकल रखता हूं मैं।
लोग विश्वास देकर के फोड देते हैं आंखें।
इसी कारण छल के धृतराष्ट्र के लिए ,
भीम से दो पुतले अपने अंदर रखता हूं मैं।
जहां जैसा पाता हूं वातावरण वैसा बन जाता हूं मैं।
कहीं कैकयी कहीं कौशल्या कहीं राम तो कहीं रावण बन जाता हूं मैं।
मुझे ना चाहिए शोहरत दुनिया की मुझे बस अपनेपन का अहसास चाहिए।
इसी एहसास को हर किसी में ढूंढता रहता हूं मैं।
कहीं छल से कहीं फरेब से कहीं धोको से कट जा रहा हूं मैं ।
इसी कारण अपने दो चेहरे अपने अंदर लिए फिरता हूं मैं ।
किसी को पास तो किसी किसी को दूर अपने से आजकल रखता हूं मै।
सच्चा अपनापन पाने के लिए खुद धोखे खाता रहता हूं मैं।
मुझे नहीं मालूम दोस्तों कि क्या बन गया हूं मैं।
मुझे गलत मत समझना दोस्तों ,
दुनिया ही ऐसी है,
इसलिए ऐसा बना फिरता हूं मैं।
इसी कारण अपने दो चेहरे अपने अंदर लिए फिरता हूं मैं।
किसी को पास तो किसी को
अपने से दूर आजकल रखता हूं मैं।
चतरसिंह गेहलोत निवाली जिला बड़वानी