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12 Jun 2023 · 1 min read

दो घड़ी राहत

दो घड़ी राहत

न जाने क्यूँ आजकल
मज़ा आता है सोचने में –
यूं ही किसी बात को ले
कल्पना के पंख लगा
इधर से उधर, उधर से इथर
ऊपर नीचे दाएं बाएं
और न जाने किधर किधर।

उड़ती कुलांचे भरती
निकाल जाती हूँ दूर कहीं
इस दुनिया से बेखबर
अपनी मस्ती मेँ तरबतर ।

खो जाती हूँ स्वप्न लोक में
दिवा स्वप्न नहीं चाहती
पर फिर भी देखती हूँ
शायद इस लिए कि
दो घड़ी तो राहत मिलती है
समस्याओं से पूर्ण इस जीवन से।

Language: Hindi
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