— दो गज ही सही —
दो गज ही सही
यह मेरी जमीन तो है
हे मौत
तूने मुझे यह देकर
जमींदार बना दिया !!
जिन्दगी भर खोजता रहा
रहने को बनाऊं इक घरोंदा
न जाने कहाँ कहाँ भटका
बिछाने को अपना बिछोना !!
कभी मट्टी, कभी संगेमरमर
पर कभी न मिला चैन से सोना
आज तेरी इस दो गज जमीन ने
मेरा पक्का कर दिया आशियाना !!
न आएगा अब मुझे कोई जगाने
न होंगे अब दूसरे मेरे ठिकाने
तेरी मिटटी की खुशबू में
सिमट कर बस रह जाऊँगा
शुक्रिया कैसे करूँ तेरा मैं
मेरी साँसों ने भी वापिस नही आना !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ