दो अर्थो की जिंदगी
दो अर्थो की ये जिंदगी
बेहतर कभी तो कभी बदतर दिख रही है
कहीं राहत से भर जाती है साँसे
तो कहीं उन्ही साँसो की अटकनो से
रुहे बिलख रही है।
एक तरफ तो कोई धीर से है भरा
मदमस्त है पड़ा
दूजी और एक बेआवाज चिख रही है।
एक अनबन सी है, एक चाहत सी है
इंसानी भावो मे लिपटी
एक समझ हर रोज नयी समझ सिख रही है।
दो अर्थों की ये जिन्दगी
बेहतर कभी तो कभी बदतर दिख रही है