दोहे
#फूल-फूल डाली खिले ,भ्रमर करे गुंजार।
राह प्रेम फिसलन भरी, स्वार्थ पूर्ण आधार।।
#ईश्वर माली जगत का, मानुष का अवतार।
चौरासी लख योनि का,सतत करे उद्धार।।
#कली काल मंगल चरण, भज प्रभु बारम्बार।
भाव-भक्ति शुभ भावना, जीवन के हैं सार।।
देख #कली आँगन खिली ,माली करे पुकार।
ईश कृपा झोली भरी, चहक उठा संसार।।
माँ चरणों में स्वर्ग है,सध जाते सब काम।
#परम धाम का सुख यहाँ,पूजो तुम निष्काम।
विष्णु बसे #बैकुंठ में, करुणा ,शील निधान।
जप ले मन प्रभु नाम को,छोड़ सकल अभिमान।।
मन-#मंथन जब-जब किया, पाया अहं विचार।
अहं मूल अज्ञान है, बढ़ता विषय विकार।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
शब्द
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वर्ण-वर्ण के मेल से, सृजित शब्द संसार।
शब्द द्वंद्व कारण बने, शब्दों से ही प्यार।।
शब्द मचाते शोर हैं, शब्द-शब्द उपचार।
शब्द हृदय उद्गार हैं, शब्द-शब्द व्यवहार।।
मौन भाव मुखरित हुए , जैसे तीर-कमान ।।
कहीं शब्द आघात दे, कहीं गँवाए मान।।
शब्द तोल कर बोलिए, रिश्तों के आधार।।
जीवन में विष घोलते, शब्द बने तलवार।।
शब्दों की महिमा अजब, शब्द-शब्द में भाव।
दुश्मन जैसी पीर दे , नमक छिड़कते घाव।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
दिनांक-28.5.2019
मंगलवार
विषय-लोकतंत्र की जीत
विधा-दोहे
लोकतंत्र की जीत
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लोकतंत्र का व्याकरण, मत समझो आसान।
पाँच साल में हम सभी, करते हैं मतदान।।
बहुमत की सरकार है, लोकतंत्र की जीत।
सत्य, न्याय, सौहार्द ही, हो भारत की रीत।।
बीजेपी सत्ता सजी, बढ़ा देश का मान।
पीएम मोदी बन गए, हम सबकी पहचान।।
पूरी होंगी नीतियाँ, जनता का विश्वास।
रोज़गार की योजना, होंगी अबके खास।।
आँच न आए देश पर, घटे नहीं सम्मान।
वंशवाद का राग तज,बनो जगत की शान।।
जनसेवा का भाव ही, होता सच्ची जीत।
जाति-पाँति, भाषा, धर्म, नहीं बढ़ाते प्रीत।।
राजनीति की देह पर ,चढ़े प्रेम का रंग।
उदासीन सत्ता तले, छिड़ जाती है जंग।।
बाट जोहते दल सभी, राजनीति में आज।
ढ़ूँढ़ रहे कमियाँ सभी, बेबस सकल समाज।।
प्रजातंत्र में दल सभी, सत्ता की जागीर।
विश्व पटल पर मित्रता , बदलेगी तस्वीर।।
लोकतंत्र की जीत पर, सब मिल गाओ गान।
चौकीदारी कर रहा ,नेता एक महान।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
कहीं धरा मरुथल बनीं, रोता कहीं किसान।
कहीं बाढ़ संकेत दे, मिटा रही पहचान।।
बारिश के आतंक का, मचा हुआ है शोर।
जीना दूभर कर दिया, बाढ़ दिखे चहुँ ओर।।
झोंपड़-पट्टी बह गई, नरक बनाया हाल।
पग-पग चलते बाँस पर, बाढ़ हुई विकराल।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर