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28 Dec 2018 · 1 min read

दोहे

औद्योगिक क्षमता लिये, उन्नति का मधुमास.
गुड़ गुल चीनी जैगरी, बदलेंगे इतिहास.

हरियाली की हो छटा, नई फसल का अन्न.
हर किसान का स्वप्न है, खेती हो संपन्न.

चल कबीर सीढ़ी चढ़ें, रख मन में विश्वास.
उन्नति छूए चाँद को, धरती पर हो रास.

हवा प्रदूषित हो गई, चुप धरती के गाँव.
किस ग्रह पर जा बस रही, अब पीपल की छाँव.

कागजात कविता हुई, चढ़े चुटकुले मंच.
नकद लिफाफा बन गये, आयोजक सरपंच.

पता न कैसे छा रहे, आसमान में अब्द.
हिंदी के घर में घुसे, अँगरेजी के शब्द.

शब्दकोश संसद हुए, अर्थ हुए अनुमान.
शब्द विधायक हो गये, सांसद हर उपमान.

चिरवांछित है आज तक, किरणों का लालित्य.
कई विधाओं में रचा, सूरज ने साहित्य.

वैज्ञानिकता के चरण, करते हैं नित खोज.
इतिहासों के पृष्ठ पर, लिखते कुछ-कुछ रोज.

प्राणवायु का दम घुटा, पारा की कम चाल.
पानी पानी माँगता, गौरैया ननिहाल.

मौसम छत पर टाँगता, धूआँ बंदनवार.
तापमान है पढ़ रहा, कुहरे का अखबार.

मौसम करने है गया, ऋतुओं से अनुबंध.
हवा बढ़ाने में लगी, कौटुंबिक संबंध.

पगहा-छान तुड़ा रही, लोकतंत्र की गाय.
सरदी पीने लग गई, अब अदरक की चाय.

दोहा, मुक्तक, माहिया, ताका, हाइकु, गीत.
कविताओं के गाँव में, अक्षर के संगीत.

पुलिस न यायायात की, कंकड़-कंकड़ फर्श.
नगर निगम है कह रहा, चौराहा आदर्श.

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ

Language: Hindi
1 Like · 256 Views
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