‘दोहे’
काल चक्र घूमे सदा, करता नहीं विश्राम।
हानि-लाभ क्या सोचना, सतत कीजिए काम।।1
सरल रहें व्यवहार में, शुद्ध रखें आचार।
क्रोध लोभ मद छोड़ दें, हृदय रखें सुविचार।।2
मन की आँखें खोल दे, सुंदर ये संसार।
प्रेम भाव मन में रहे, छूटें कटुक विचार।।3
बूँद – बूँद से घट भरे, और अन्न से पेट।
लोभी का मन कब भरे, धन को रहा समेट।।4
दुविधा जो मन आ गयी, भीतर-भीतर खाय।
बिना बात के वक्त को, यूँ ही गंवाती जाय।।5
चाह प्रगति की जो करे, देता आलस त्याग।
देर अधिक होती नहीं, जगें शीघ्र ही भाग।।6
विजय सत्य की हो सदा, झूठ ओढ़ता हार।
सत्य नित्य शाश्वत रहे, झूठ रहे दिन चार।।7
स्वरचित व मौलिक
-गोदाम्बरी नेगी