दोहे
झुके नहीं अन्याय के, सम्मुख मेरा शीश।
दे दो इतनी शक्ति बस,कृपासिंधु जगदीश।।1
पद के कारण व्यक्ति में,जब आता अभिमान।
रोक नहीं पाता पतन ,फिर उसका भगवान।।2
पास न आने दें कभी,चिंता और तनाव।
देते हैं नासूर -सा ,ये सेहत को घाव।।3
गलत काम को देखकर,उसको आता क्रोध।
सामाजिक- दायित्व का ,जिसको होता बोध।।4
समझदार हर व्यक्ति बस,करे यही अनुरोध।
छोटी-छोटी बात पर ,कभी न करना क्रोध।।5
ज्ञानी देते हैं यही ,सबको एक सुझाव।
मद्यप बालक वृद्ध पर,कभी न खाना ताव।।6
दाता ने जो भी दिया ,हँसकर करें कबूल।
असंतुष्टि का भाव है,जग में दुख का मूल।।7
मैं ही केवल श्रेष्ठ हूँ, कहते इसे गुमान।
कोई भी होता नहीं,बस सद्गुण की खान।।8
डाॅ बिपिन पाण्डेय