दोहे
उर संवेदनशील हो, ऊँच सोच का कर्म।
मानवता की सीख दे, सदा मनुज को धर्म।।//1
करना नहीं विवाद तुम, करे शाँति यह भंग।
प्रेम दया मुस्क़ान से, जीत सकें हर जंग।।//2
संकट मिले अनंत पर, हुआ नहीं भयभीत।
सोच समझकर हल किया, गूँजे उसके गीत।।//3
शुभ से शोभित मन करो, जीवन भरे उमंग।
जैसे रहे सुगंध है, प्रतिपल फूलों संग।।//4
कपट कभी मत कीजिये, उर के खोल किवाड़।
एक भूल लघु आपकी, वरना बने पहाड़।।//5
परहित जग में कर्म कर, ऊँचा होगा नाम।
स्वार्थ सदा ही हारता, बुरी तरह नाकाम।।//6
बेशर्मी से तुम अगर, छू लोगे आकाश।
निश्चित है पर एक दिन, होगा बुरा विनाश।।//7
प्रीतम कर से कर्म कर, बदले मन व्यवहार।
कर बिन ये लाचार हैं, मानव गज सरकार।।//1
पृथ्वी सबको मोहती, मानव दानव देव।
स्वर्ग नरक तो स्वप्न हैं, जैसे तन में मेव।।//2
करो मेहनत रुचि लिए, छू लोगे आकाश।
स्वीच ऑन होता तभी, फैले धरा प्रकाश।।//3
सीख नदी से लीजिये, रहे हृदय गतिमान।
राह खोज सरवर मिले, लिखे प्रेम का गान।।//4
दुख मुझसे सब हार गये, बनके रहा सुजान।
जीवन के आकाश में, ऊँची भरी उड़ान।।//5
क्लेश कभी मत कीजिये, जीवन हो बदरंग।
ज्ञान शील अरु प्रेम से, मिटे सदा हुडदंग।।//6
रोग नहीं विकराल हो, लापरवाही भूल।
समय रहे ईलाज़ कर, हटे दर्द की धूल।।//7
#पवन
पवनपुत्र हनुमान का, मंगलकारी नाम।
सदा प्रेम से लीजिये, शुभ होंगे सब काम।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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