#दोहे
दुष्ट लोग ठहरें नहीं , होते धूल समान।
पवन उड़ा फैंके इन्हें , पता नहीं किस स्थान।।
सज्जन उस तरु सम रहे , जो लगता नद तीर।
निज ऋतु में फूले फले , बढ़ता रहे शरीर।।
चाहत-चाहत से बढ़े , देती यही तमीज़।
मिलें मसाले सब सही , सब्जी बने लजीज़।।
तारक मणियों से खिला , नभ ज्यों सिर का ताज।
संस्कारों से उर खिलें , आगे बढ़ें समाज।।
सच जीवन का ज्ञात कर , बिना किये कुछ देर।
देर हुयी तो काल फिर , लाये घना अँधेर।।
पीर परायी देख कर , हँस मत देना भूल।
फूल सदा कब फूलते , मिलें एक दिन धूल।।
मिटा हृदय से नेह तो , पाहन सम हैं आप।
पाहन ठोकर दे अगर , पाता सबसे श्राप।।
#आर.एस.’प्रीतम’
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