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23 Jun 2018 · 1 min read

संतोष ही परम सुख

दोहे

प्रीतम मुखिया भार पद,बड़ी चुनौती होय।
मालिक से ख़ुश ना सभी,मानव से क्या होय।।

प्रीतम इच्छा छोड़ सब,मिले हृदय संतोष।
कर्म नेक करते चलें,कभी हृदय ना रोष।।

प्रीतम धोखा जाल जग,छलते जाते हार।
स्वर्ण-हिरण की चाह में,रामा खाए खार।।

प्रीतम घर का नाश है,भूल नशे की बात।
दीमक खाए काट को,खाता यूँ ही गात।।

प्रीतम जैसी चाह है,साथी वैसे राख।
धारण उनके होय गुण,सफ़र मिले साख।।

प्रीतम ऊँचा होय के,भूल नहीं औक़ात।
कितना लम्बा होय दिन,होती है पर रात।।

प्रीतम चाहत फूल-सी,भूलो ना ये बात।
चकोर चाहे चाँद को,सोचे आए रात।।

प्रीतम मिलिए प्रेम से,हँसके करना बात।
तन-मन पुलकित यूँ रहे,खिले पंक जलजात।।

प्रीतम रहिए शौक़ से,रहना है दिन चार।
सोच सदा ही सालती,देती जीवन हार।।

प्रीतम छोड़ो आग तुम,आग नहीं है ठीक।
लोह गला दे पाश ले,नाश जड़ी ये लीक।।

आर.एस. “प्रीतम”

Language: Hindi
734 Views
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