बदली नही लकीर
सरकारें बदली कई,….बदले कई वजीर !
हाथों मे धनहीन की ,बदली नही लकीर !!
आओ छीनें रोशनी,सूरज की इस बार !
करते रहते है यही, जुगनू कई विचार ! !
छेड़ा मैने जब कभी,सच्चाई का साज़ !
मेरे अपने हो गए ,…कितने ही नाराज़ !!
होना लेकर नम्रता, आगे उनके पेश !
देतें हैं जो वक्त पर,अपना वक्त रमेश !!
गगरी आधी है अगर, ……लेगी मित्र उछाल !
कितना भी रख लीजिए,उसको आप सँभाल !!
किया हमेशा आपने,अगर झूठ ही पेश !
होगा घेरे मे सदा,..शक के सत्य रमेश ! !
रमेश शर्मा