दोहे मन को भाए
खुल जाए बंधन सभी, भज ले तू श्री राम।
पत्थर भी सब तर गए, लिखें हुए प्रभु नाम ।।1
जब कोई राह न दिखे, तम हीं तम चहुँओर।
एक आस प्रभु नाम की, दिखलाती नव भोर।।2
जीवन की इस दौड़ में, मत भूलो प्रभु नाम।
यह धन दौलत क्षणिक हैं, अजर अमर श्री राम।। 3
बीता जाये यह समय, जैसे फिसले रेत।
धर्म कर्म के काज से, जाओ अब तुम चेत।।4
जोड़ जोड़ माया मरे, मरा न मन का मेल।
ईश्वर ने कैसा रचा, दुनिया का यह खेल।। 5
लोभी मन की लालसा, नित नित बढ़ती जाय।
परमेश्वर के ध्यान से, फिर यह कभी न आय।। 6