दोहे- चरित्र
हिन्दी दोहा विषय – चरित्र
जब चरित्र बिकने लगे , धन की हो भरमार |
राना तब होने लगे , पापों का व्यापार ||
पुष्प लगानें जब लगें , अपने ऊपर इत्र |
राना खुश्बू का वहाँ, होता पतन चरित्र ||
सत्य कृत्य के शुचि वचन , होते सदा पुनीत |
राना इनके भाव से , हो चरित्र की जीत ||
जैसी संगत नर करे , हो राना बदलाव |
तब चरित्र होता प्रकट , बतलाता है भाव ||
यदि चरित्र उज्ज्वल रहे , नर बनता गुणवान |
राना रखता पास है , सदा श्रेष्ठ सम्मान ||
राना पत्नी से कहे , तुम घर में हो इत्र |
बोली वह यह सूँघना , सीखा कहाँ चरित्र ||
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दोहाकार -राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
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