#दोहे एवं चौपाइयाँ
#दोहे एवं चौपाइयाँ
तरुवर नीचे तरु घटे, फूले थोड़ी दूर।
कर्म मनुज का भाग्य है, करे यही मशहूर।
औलाद सही सब सही, रचे स्वयं निज गान।
ग़लत हुई तो जो दिया, समझे धूल समान।।
मिला मेहनत से उर भाए।
रोम-रोम इसका गुन गाए।।
बिना यत्न के जो मिलता है।
मन मानव का वो छलता है।।
नम्र भावना हर अपनापन।
श्रम का ही होता विज्ञापन।।
कर्म परे मत भागो प्यारे।
बिना कर्म के पतन इशारे।।
वही बहादुर जो रण जीते।
कायर बातों में ही बीते।।
जो संकट में राह निकाले।
घर में उसके सदा उजाले।।
जो कष्टों में लिए हताशा।
सदा चिड़ाए उसे निराशा।।
सहनशील ही सच्चा ज्ञानी।
क्रोध दंभ में रहे अज्ञानी।।
कभी हार से मत हारो तुम।
हार संग जीत सँवारो तुम।।
आशा ज्योति जलाकर चलना।
अँधियारों से ऐसे टलना।।
लग्न तुम्हारी ओज भरेगी।
यही तुम्हें हँस विजय करेगी।।
पाबंद हमेशा तुम रहना।
एहसान नहीं कभी लेना।।
# दोहा
केतन पाकर जाइये, मिले सदा सत्कार।
बिन केतन के गौण सब, मनुज देश परिवार।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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