$दोहे एवं चौपाइयाँ
#दोहा
सुप्त-शक्तियाँ जागती, मिले प्रेरणा नेक।
पवनपुत्र में ओज था, जामवंत की टेक।।
कठिन स्वयं को यहाँ समझना।
दुख का कारण हृदय भटकना।।
नीर नयन का हाथ तुम्हारे।
बनो स्वयं के स्वयं सहारे।।
पवन स्वयं ही बहता जाए।
नदिया अपना मार्ग बनाए।।
पर्वत खुद ही सीखें उठना।
पुष्प स्वयं ही सीखें खिलना।।
पावन मन का कोना करके।
पथ में चलना निर्भय बनके।।
पाने को कुछ होगा खोना।
बिन खोये तो होगा रोना।।
वर्षा खातिर मिटते बादल।
नदिया खातिर तनते साहिल।।
कला तपस्या सालों की है।
गीत मधुरता तालों की है।।
सुनके भी गर सीखा जाए।
सही रूप ले हृदय लुभाए।।
ग़लती पर जो ग़लती करता।
निज की ख़ुशियाँ निज ही हरता।।
औरों से भी शिक्षा लेकर।
होते सफल परीक्षा देकर।।
ज्ञान कहीं से भी तुम पाओ।
जीवन अपना अमर बनाओ।।
मक़सद लेकर जीवन सच्चा।
बिन अर्थों का जीवन कच्चा।।
चराचर अर्थ लिए बनाए।
मूर्ख बिना अर्थ लिए जाए।।
वैभव पाकर जो दुख पाते।
समझ नहीं वो जीवन जाते।।
इस जीवन में ऊँचाई हो।
पर्वत या जीवन राई हो।।
#दोहा
श्रद्धा आस्था वेदना, जीवन के हैं धर्म।
तन सुंदर फीका बने, सबसे ऊँचे कर्म।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित रचना