दोहा
#सौरभ से महका चमन, भ्रमर करें गुंजार।
वन-उपवन पुष्पित धरा, चहक उठा संसार।
माया बंधन मोह का, मन अवगुण की खान।
नश्वर यह संसार है,क्यों करता अभिमान।।
आशुतोष परितोष हैं, आदि ,अनादि, अनंत।
भस्म लगा तन शंभु को, जपते संत महंत।।
निज भाषा के ज्ञान बिन, मिले नहीं पहचान।
हिंदी हिंदुस्तान की, सदा बढ़ाओ मान।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)