दोहा सप्तक : इच्छा ,कामना, चाह आदि
दोहा सप्तक : इच्छा ,कामना, चाह आदि
मानव मन संसार में, इच्छाओं का दास ।
ओर -ओर की चाह में, निस-दिन बढ़ती प्यास ।1।
इच्छा हो जो बलवती, सध जाता हर काम ।
चर्चा उसके नाम की, गूँजे आठों याम ।2।
व्यवधानों की लक्ष्य में, जो करते परवाह ।
क्षीण लगे उद्देश्य में, उनके मन की चाह ।3।
अन्तर्मन की कामना, छूने की आकाश ।
सम्भव है यह भी अगर, होवें नहीं हताश ।4।
परिलक्षित संसार में, होता वो परिणाम ।
इच्छा के अनुरूप जब, हासिल करें मुकाम ।5।
कैसे होगा लक्ष्य का, सफल भला संधान ।
इच्छा हो कमजोर तो, निष्फल तीर कमान ।6।
सम्भव कब संसार में, इच्छाओं का त्याग ।
विचलित करती कामना, भड़के मन में आग।7।
सुशील सरना / 5-7-24