दोहा मुक्तक
चाँद शरद जब चमकता , बरसे अमृत धार
प्रभू नाम की खीर से , पाये मानव सार
चन्दा सौलह कला से , जगा रहा उन्माद ,
हुलसी जाये देह यह , बुला रहा है यार
चाँद शरद जब चमकता , बरसे अमृत धार
प्रभू नाम की खीर से , पाये मानव सार
चन्दा सौलह कला से , जगा रहा उन्माद ,
हुलसी जाये देह यह , बुला रहा है यार