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30 Nov 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . अलि

दोहा पंचक. . . . अलि

झरे कुसुम अब डाल से, गर्ई बहारें रीत ।
अलि अपनी गुँजार के, छोड़ सुनाने गीत ।।

उपवन के हर पुष्प पर, अलि होता आसक्त ।
करे मधुर गुँजार से, मौन प्रणय को व्यक्त ।।

अलिकुल की गुंजार , सुमन हुए भयभीत ।
गंध चुराने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।

आशिक भौंरे दिलजले, कलियों के शौकीन ।
क्षुधा मिटा देते सदा, घाव बड़े संगीन ।।

पुष्प दलों को भा गई, अलिकुल की गुंजार ।
मौन समर्पण कर दिया, मुखर हुआ अभिसार ।।

सुशील सरना / 30-11-24

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