दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
अवगुंठन में प्रीति के, शंकित क्यों स्वीकार ।
आलिंगन में हो सृजित , सपनों का अंबार ।।
बड़ी अजब है इश्क के, अरमानों की आँच ।
इसके ख्वाबों को भला , कौन सका है बाँच ।।
रह – रह कर यह धड़कनें, याद करें वो बात ।
कैसे बीती वस्ल की, बारिश वाली रात ।।
सुशील सरना / 29-9-24