दोहा छंद- पिता
सुखद निलय मधु मूल है, पिता धूप में छाँव।
नायक शुभ परिवार का, दृढ़ ग्रहस्थ दे पाँव।।(१)
नित्य दिवस निशि कर्म कर, पोषक पालनहार।
उदर तृप्त परिवार का, प्रमुदित शुभ घर द्वार।। (२)
अति कठोर उर आवरण, अंत मृदुल संसार।
कठिन परिश्रम से पिता, सुत भविष्य दे तार।। (३)
मूक हृदय मधु भाव रख, कर्म करे दिन-रात।
विपदा में सुत ढाल बन, प्रलय काल दे मात।।(४)
थाम ऊँगली प्रति कदम, साथ चले वो पंथ।
उनके काँधे बैठकर, देखे उत्सव ग्रंथ।।(५)
पिता डाँट कड़वी लगे, करती औषध कर्म।
बुरी आदतें त्यागनें, कुशल निभाए धर्म।।(६)
कर्मठता से सींचकर, नींव बनाए दक्ष।
यश वैभव सुविधा सभी, पिता प्रदायक वृक्ष।। (७)
शीर्ष पिता साया रहे, सकल स्वप्न साकार।
खुशियों के विस्तार से, मिटे तमस कटु खार।।(८)
रिश्तें सब अपने लगे, पिता रहे जब साथ।
विकट पंथ आसान हो, थामें जब वह हाथ।। (९)
पिता धरा आकाश है, सकल जगत आधार ।
करूँ नमन शत्-शत् पिता, शुभ जीवन का सार।। (१०)
रेखा कापसे ‘कुमुद’
नर्मदापुरम मप्र
स्वरचित दोहे