दोहावली
समझ बात की जब बढ़े, उसे समझिए ज्ञान।
रटी हुई हर बात तो, अर्थ रखे अनजान।।//1
भूल समझता भूल कर, वही बने विद्वान।
मूर्ख मगर वह भूल कर, सोये चादर तान।।//2
शक्ल देख मत न्याय कर, देख किया जो कर्म।
सच्चे हर इंसान का, यही बड़ा है धर्म।।//3
जिसकी जैसी सोच है, उसका उतना मान।
काँटों से परहेज़ हो, फूलों पर हो ध्यान।।//4
आदत से मज़बूर हो, किये बुरे सब काम।
अच्छाई का अब तुम्हें, नहीं मिले ईनाम।।//5
धैर्य बिना बेकार है, शान ज्ञान सम्मान।
बुरी भली जैसी मिले, स्थिति हर को पहचान।।//6
प्रीतम तेरे प्रेम को, समझे सिर्फ़ सुजान।
दीप दिखा लघु दीर्घ को, देते सम सम्मान।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’