************* दोहावली ************
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रीत प्रीत की डोर से,मृत भी होत सुजान।
ज्ञान ध्यान। की भोर से,मिट जाए अज्ञान।।
धरा भरी है पाप से,कैसे मिले निजात।
पुण्य की जब हवा चले,होगी नव प्रभात।।
बात चीत से ही जुड़े,उजड़े हुए कुटुंब।
मधुर वचन से हैँ बने,निखरे निसार बिंब।।
जाति पाति विष घोलती , फैले द्वेष गंध।
क्रोध लोभ बिन क्षोभ से,बिखरे प्रेम सुगंध।।
मानसीरत कह चला, सीधी साधी बात।
मन मंदिर में धारिये,अच्छे हों दिन रात।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)