‘दोस्तों की याद में’
यादों भरी फिर सुबह आ रही है..
ये बारिश नयन को डुबो जा रही है..
वो मुस्कान खुद की, वो बातें..वो किस्से!
वो परछाईं बनते थे लगते फ़रिश्ते!
अकेले भला चाय पीनी थी किसको?
तुम्हारे बिना.. क्या समोसे? क्या बिस्कुट?
गले लग के बढ़ता था जो स्वाद अपना..
वो आँखों का तपना, वो सजना-सिमटना
वो प्रियतम की बातें..बिना प्रिय की रातें!
समाधान सारे तुम्ही थे बताते..
चले आओ महफ़िल को फिर से सजायें
जो छूटे सफर मे उन्हें खींच लायें
या आकर लिए जाओ लम्हें पुराने!
नहीं जीने देते वो गुज़रे ज़माने!!
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ