दोस्ती
इसलिए आज मेरे सर पर कोई तारा ही नहीं।
मेरी किस्मत को किसी ने भी संवारा ही नहीं।
वो भी खुद्दार थी जिसने मुड़कर देखा तक नहीं ।
मैं भी जिद्दी थी इसलिए उसको मैंने पुकारा नहीं ।
वह कौन थी जिस पर दिल फिदा मेरा हो गया ।
उसकी जानिब से हमको मिला कोई इशारा नहीं ।
मोहब्बत में इस कद्र दूरियां बढ़ती चली गई।
अब उनसे मुलाकात का कोई चारा ही नहीं।
जो देखा अकेला मैंने आज उसको इस तरह ।
लगा मुझको ऐसे जैसे चांद के साथ सितारा ही नहीं ।
हुस्न उसका देखकर हैरान रह गये हम ।
लेकिन उसके दिल को शायद हम गवारा ही नहीं।
मजबूर इतने हो गये की कुछ कह नहीं सकते।
दोस्ती के बिना अब मेरा गुज़ारा ही नहीं ।।
Phool gufran