संभलकर
ये वक्त कितना खतरनाक है,
ये जमाना कितना दर्दनाक है।
किसी से मिलो तो संभलकर मिलना,
किसी को मारना आजकल कारोबार है।।
किसपे करें भरोसा किसपे नहीं,
कुछ समझ नहीं आता।
यहां पर अपना कोई भी
नजर नहीं आता।।
कभी मजहब की आड़ में
तो कभी प्यार के व्यापार में।
लगाई जा रही है मौत की बोलियां
सरेआम बीच बाजार में।।
©अभिषेक पाण्डेय अभि