“दोस्ती का मतलब”
सभी दोस्तों को लग रहा था कि मिश्राजी पिछले काफी दिनों से चिंता में रहने लगे है। उनकी नजर में उनका भरा पूरा परिवार है। पत्नी, बेटा, बहू, एक पोता और एक बच्चा होने वाला है, बेटी भी अपने घर मे खुशहाल है। व्यापारी आदमी है इसलिए स्थान परिवर्तन की समस्या भी नहीं है।
मगर उनसे पूछे कौन? एक रविवार को सभी दोस्त गार्डन में बैठे थे तो अशोक जी ने इस बात को उठाया और चर्चा को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। पहले तो वे कुछ भी बताने से मना करते रहे, फिर सबने जोर दिया तो वो कहने लगे कि उनकी बहू को बच्चा होने वाला है, उनकी पत्नी की तबियत ठीक नहीं रहती और वो बहू को मायके भेजने पर भी राजी नहीं हो रही है। यही उनकी चिंता का कारण है। सभी दोस्तों ने इसका कारण पूछा तो वो कहने लगे कि सामाजिक व्यवहार के कारण पिछली डिलीवरी बहू के मायके में ही हुई थी सो अबकी बार उसे वहां नहीं भेज सकते और वहां से भी कोई खास व्यवस्था नहीं हो सकती।
पारिवारिक मामला था इसलिए कोई दोस्त कुछ बोल नहीं पाया और वे सब अपने अपने घर चले गये। मिश्रा जी भी चिंतित मुद्रा में अपने घर की तरफ चल पड़े।
अगले दो तीन दिन तक मिश्राजी गार्डन में घूमने भी नहीं आये तो सभी दोस्तों के चहरे उतर गए। सभी के घर का माहौल भी चिंताग्रस्त हो गया।
दो दिन बाद उनके दोस्त गुप्ता जी की लड़की ससुराल से आई हुई थी, उसने अपने पापा को इस तरह उदास देखा तो कारण पूछा। गुप्ताजी ने उसे सारी बात बताई तो उसने अपनी माँ को आवाज लगाई और उनको अपने पास बैठा कर कहा मम्मी अगर ऐसी परिस्थिति हमारे साथ हो तो तुम क्या करोगी। उसकी माँ ने कहा कि मै अकेली हूँ और मेरी तुम अकेली सन्तान हो अगर हमारे साथ ऐसा हो तो मै अपनी सहेलियों की मदद लेती। बस रास्ता मिल गया। उसने अपने पापा से कहा – पापा आप सब दोस्त हैं तो आपके परिवार के लोगों में भी आपस में दोस्ती होनी चाहिए ताकि किसी भी अच्छे बुरे समय मे सब एक दूसरे का सहारा बन सके।
गुप्ताजी को तो मानो जीवनदान मिल गया। उन्होंने अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर कर आशीर्वाद दिया और अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उन्हें उनके चहरे पर भी खुशी भरी हामी दिखाई दी।
गुप्ताजी दिनभर अगले दिन की प्रतीक्षा में रहे और सुबह जल्दी से गार्डन की ओर चल पड़े, आज उनकी चाल निराली लग रही थी, जैसे जैसे सब दोस्त इकट्ठा हुए तो उन्होंने घूमने की बजाय सब को एक जगह बिठाए रखा। मिश्रा जी आज भी नहीं आये थे और किसी को कुछ समझ भी नहीं आ रहा था। शर्मा जी ने पूछा कि भाई आज सब को यूँ ही क्यों बैठा रखा है तो उन्होंने अपने घर पर हुई सारी बात उन लोगों को बताई और एक सवालिया नजर उन सब पर डाली। अशोक जी तुरन्त बोले भई वाह आपकी लड़की तो बहुत समझदार है। हम सबके दिमाग मे यह बात क्यों नहीं आई। और सबको संबोधित करते हुए कहा कि हम सब आज ही अपने घरों में इसकी चर्चा करेंगे और शाम को सब अपनी अपनी पत्नियों के साथ मेरे घर पर मिल रहे हैं। सभी खुश नजर आ रहे थे।
शाम को सभी दोस्त अपनी अपनी पत्नियों के साथ अशोक जी के घर पर इकट्ठा हुए। आपस मे विचार विमर्श किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि सही में हमें आपस मे मिलकर इस अवसर को एक दूसरे की जरूरत समझ कर कार्य करना चाहिए।
अगला दिन रविवार था और सब लोग मिलकर मिश्रा जी के यहाँ जाने का प्रोग्राम बनाने लगे। गुप्ताजी ने तुरंत मिश्राजी को फोन करके बताया कि कल सुबह हम सब आपके घर आ रहे हैं। मिश्राजी कुछ समझ नहीं पाए परन्तु उन्होंने हामी भर दी।
अगले दिन सुबह सब लोग कुछ फल और मिठाई लेकर मिश्राजी के घर पहुँचे, उन्हें देख कर मिश्राजी की पत्नी और बहू आश्चर्यचकित हो गए और वे उनकी आवभगत करने लगे तो सब महिलाओं ने एक साथ उन्हें ऐसा करने से रोका और अपने पास बैठने को कहा।
गुप्ताजी की पत्नी ने माफी मांगते हुए कहा – भाभीजी आप हमारे पतियों को माफ करियेगा कि उन्होंने आज तक हमें आपकी स्थिति के बारे में कभी नहीं बताया। आज से हम सब एक परिवार की तरह हैं और आपके घर मे जो शुभ प्रसंग होने वाला है उसमें हम सब आपके साथ हैं आप किसी भी प्रकार की चिंता ना करें। मिश्राजी के परिवार ने कृतज्ञ भाव से उन सबका धन्यवाद करना चाहा तो पंडित जी बोले भाई धन्यवाद करना है तो हमारा नहीं गुप्ताजी की लड़की का करो जिसने हमें दोस्ती का मतलब समझाया है।