दोनों हाथों की बुनाई
दोनों हाथों की बुनाई
***************
ऐसा नहीं कि
पलकें कभी भीगी न हों,
ऐसा नहीं कि
वो काजल की काली लकीर
आंसुओं से मिटी न हो,
ऐसा नहीं कि
मैं सावन –भादों बनी आँखों में
खो गए प्रेम के धागों को
पकड़ने में असफल रहा हूँ,
ऐसा नहीं की इन 25 वर्षो में
आंखे – काजल – सपनों के क्रम
आगे पीछे न हुए हो,
लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ की
शीत ॠतु आई हो
बिना तुम्हारे हाथों बने
नए गर्म स्वेटर को लिए हुए,
यही तो लगाव था,
विश्वास था / सौगंध थी / समझ थी
साथ निभाने की
बिना रुके साथ चलते जाने की …
वक्त – बेवक्त मौसम की मार
नहीं तोड़ सके आत्मीय सरोकार
हर बार की आँधी
और हर बार के तूफान
हर भूचाल -जलजले के बाद
हम आँखों – आँखों आपस में
एक दूजे को पढ़ते रहे
मैं आँखों के धागे को पकड़ता रहा
देर सबेर ही सही, लेकिन बुनता रहा
सुंदर सपने तुम्हारे लिए…
और तुम कडक शीत से बचने के लिए
ऊन के खूबसूरत स्वेटर हमारे लिए ।
– अवधेश सिंह