देह मोबाइल
देह- मोबाइल
में चले ,
इण्टरनेटी साँस ।
सोशल
मिडिया खून है ,
गुग्गल जैसे माँस ॥
उँगली से
हैं नाचते ,
मन के सारे
भाव
सारी दुनिया
जेब में,
हर पल
रहती पास ॥
रिश्ते
चैटिंग में फँसे,
जैसे
मकड़ी जाल ।
जिसका
जितना दायरा ,
है उतना
वह ख़ास ॥
कलयुग में
ज्यों हो गया
तृष्णा यूँ
साकार I
अमित
अमिट है भूख यह ,
जिसकी
हर पल आस।।