देश सोने की चिड़िया था यह कभी …
देश सोने की चिड़िया था यह कभी,
आज क्या है कोई सोचता ही नहीं,
कभी बहतीं थी नदियां यहाँ दूध की,
आज पीने को जल भी मयस्सर नहीं,
आज जनसंख्या प्रतिपल बढ़ी जा रही
और मंहगाई का कोई ठिकाना नहीं,
बेरोजगारी दर-ब-दर ठोकरें खा रही,
जिसका कोई कहीं सुनने वाला नहीं,
खान वीरों की कहते थे इस देश को,
आज वीर कोई आगे क्यों आता नहीं,
जो मिटादे कुशासन,अव्यवस्था,अनीति को,
ऐसा दम खम नज़र भी तो आता नहीं,
कहते हैं चहुँ ओर प्रगति हुई देश में,
प्रगति हुई पर कहाँ ख़बर ही नहीं ?
मात्र भ्रष्टाचार, घोटाले और कर्ज में ?
जिनका कम होना शायद मुमकिन नहीं,
कब होगा खत्म, दौर रिश्वत का ये ?
कब हिंसा,अहिंसा में होगी विलीन ?
कब कराहें गरीबों की, खुशिया होंगी ?
इस बारे में कुछ भी तो निश्चित नहीं,
देश सोने की चिड़िया था यह कभी,
आज क्या है कोई सोचता ही नहीं …
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